संतोष धारण से सुख की प्राप्ति: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज
Attainment of Happiness
Attainment of Happiness: पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व में आज चौथा दिन है जिसे हम उत्तम शौच धर्म के नाम से जानते है परम पूज्य आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज ने आज धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हे धर्म स्नेही बन्धुओं। जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए स्वच्छता व सफाई जरूरी है, इसी सफाई का नाम ही शौच धर्म है। धन का लोभ सच्चे आनंद की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। लोभ से क्रोध होता है क्रोध से द्रोह होता है और द्रोह से शास्त्रज्ञ विद्वान भी नरक की दुःख भरी भूमियों को प्राप्त करता है शुचिता, पवित्रता, संतोषी परिणाम ही शौच धर्म है
लोभ पाप का बाप है जो समस्त अनर्थों की मूल जड़ है। लोभ जब भी जिसने भी किया है लाभ कम दुःख ज्यादा मिला है, संतोष जब भी जिसने भी किया है सुख बढ़ा है, दुख समाप्त हुआ है। बडी- बड़ी खाहिशें करने वाले ज्यादा दिन तक बड़े नहीं रह पाते हैं इसलिए कहा है कि जो प्राप्त है, वो ही पर्याप्त है इन दो शब्दों में सुख बहुत अधिक है। संतोष धारण करने वाला ही लोभ पर विजय प्राप्त कर सकता है जिस पुरुष की विराट सोच होती है वह विश्व का मित्र बनकर जीता है और मरण के उपरान्त भी जगत के लोगों के आस्था के हृदयों पर राज करता है।
केवल शरीर की पवित्रता से नहीं आत्मा की पवित्रता से अनुराग रखिऐं लोभ, मान, माया से रहित पवित्र आत्मस्वरूप ही उत्तम शोच धर्म है। गंदगी निकाले बिना जल निर्मल साफ़ नही होता, वैसे ही लोभ, (इच्छाओं) की धूल हटाए बिना परमात्मा नहीं दिखता। लोभ को जिसने त्यागा नहीं समझो उसके धर्म शुरु ही नहीं हुआ। लोभ पाप का बाप है, यह सब पापों को करता है इसके वशीभूत होकर मनुष्य क्या नहीं करता अर्थात् सब कुछ कर बैठता है अगर आप लोभ छोड़कर अपना और दूसरों का भला करने में जीवन बितातें हैं तो आपको लाभ तो होगा ही साथ ही दूसरों को भी होगा और यह बात भला करने वालों के जीवन में निश्चित ही घटित होगी क्योंकि जब आप भला को उल्टा लिखेंगे तो 'लाभ लिखा मिलेगा ऐसी ही कर्म की व्यवस्था है जैसा करोंगे उल्टा लौटकर जरूर आता है इसलिए लोभ तजकर, करो भला होगा भला। यदि ऊँची उड़ान भरना चाहते हो तो हल्के हो जाओ, इच्छाओं का भारी पन (बोझा) ऊपर नही उठने देंगे, इनका त्याग कर ही संतोष को पा जाओगे। यह जानकारी श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी ।
इच्छाएँ अनंत है, यदि एक पूरी होती है तो दूसरी इच्छाऐं बढती है और इस प्रकार 'हम संतुष्ट नहीं हो सकते। उत्तम शौच धर्म हमें सिखाता है कि भौतिक वस्तुओं का संचय, केवल इच्छा की आग को भड़काता है और यह लालच हमारी आत्मा को दुख से बाँध देता है इसलिए लाभ से दूर होकर संतोष रूपी धर्म को धारण करने वाला ही सुखी होता है यह जानकारी बाल ब्रह्मचारिणी गुंजा दीदीने दी।
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